Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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(भमवती ) सूत्र g
आगासस्थिकाएवि ॥ जीवस्थिकारणं पुच्छा ? गोयमा ! कडजुम्में, तेयोगे, णो दावरजुम्मे, णो कलिओए ॥ पोग्गलत्थिकाएणं पुच्छा ? गोयमा ! सियकडजुम्मे जाव सिय कलिओगे ॥ अडासमए जहा जीवत्थिकाए॥४॥ धन्मत्यिकाएणं भंते ! पदेसट्टयाए किं कडजुम्मे पुच्छा ? गोयमा ! कडजुम्मे, णो तेयोए णो दावरजुम्मे. णो कलिओए ॥ एवं जाव अडासमए ॥ ५॥ एएसिर्ण भंते ! धम्म
त्थिकार अहम्मत्थिकाए जाव अद्धासमयाणं दवट्ठयाए, एएसिणं अप्पाबहुगं जाव १ भावार्थ अवस्थित होने से. पुद्गलास्तिकाया की पृच्छा, अहो गौतम ! पुद्गलास्तिकाया द्रव्य से स्यात कृव युग्म |
स्यात प्रता, स्यात् द्वापर व स्यात कलियुग्म हैं, पुद्गल परपाणुओं का संघातन व भेद होने से, अद्धासमय है। जीवास्तकाया जैसे जानना.॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! धर्मास्तिकाया प्रदेश से क्या कृतयुग्म है वगैरह पृच्छा! अहो गौतम ! कृत युग्म है परंतु त्रेता, द्वापर व कलियुग्म नहीं है, क्यों की धर्मास्तिकाया प्रदेश से असंख्यात मदेश में अवस्थित है. ऐसे ही काल पर्यंत छही द्रव्यों का कथन करना. ॥ ५ ॥ अहो भगवन् !
इन धर्मास्तिकाया, अधर्मास्तिकाया यावत् काल पर्यंत छह. द्रव्यों में कौन अल्प. बहुत यावत् विशेषाधिकई 30 ? अहो गौतम जैसे पनवणा के तीसरे पद में अल्पाबहुत्व कही वैसे ही यहां कहना. अर्थात धर्मास्तिकाया ।
अधर्मास्तिकाया व आकाशास्तिकाया ये तीनों परस्पर तुल्य व सबसे घोडे, इससे जीवास्तिकाया अनंत गुनी ।
48- पच्चीसवा तक का
पंचमा विवाह
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