Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
।
48
३२
+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूज 48+
एवं वुच्च ॥ १॥ रइयाणं भंते ! कइजुम्मा पण्णता ? गोयमा ! चत्तारि जुम्मा । पण्णता, तंजहा कडजुम्मे जाव कलिओगे ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ रइयाणं चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता तंजहा कडजुम्मे, अट्ठो तहेव ॥ एवं जाव वाउकाइयाणं । वणस्सइ काइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! वणस्सइ काइया सिय कडजम्मा स्टिय तेयोया सिय दावरजुम्मा, सिय कलिओया ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ वणस्सइ काइया चतुर्थ उद्देशा कहा वैसे ही यावत् अहो गौतम ! इमलिये ऐसा कहा गया है ॥ ॥ अहो भगवन् ! नारकी को कितने युग्म कहे हैं ? अहो गौतम ! नारकी को चार युग्म कहे हैं, कृतयुग्म यावत् कलि युग्म. अहो भगवन् ! नारकी को कृतयुग्म यावत् कलि युग्म किस कारन से कहा गया है ? अहो गौतम ! पूर्वोक्त अर्थ जैसे कहना. ऐसे ही वायुकाय पर्यंत कहना. वनस्पतिकाया की पृच्छा, अहो गौतम ! वनस्पतिकायिक स्यात् कृतयुग्म स्यात् वेता स्यात् द्वापर वस्यात्क लि युग्म है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया यावत् स्यात् कलि युग्म ? अहो गौतम ! उपपान आश्री वनस्पति कायिक जीव स्यात् कृतयुग्म, स्यात् द्वापर, स्यात् त्रेता व स्यात् कलि युग्म हैं * इसलिये ऐसा कहा गया है.
* यद्यपि वनस्पति में अनंतपनाके संभव से कृतयुग्म है ताहंपि गत्यांतर से एकादि जीव का वहां उत्पाद अंगी। कार करके उस को चारों रूपपने सम काल न होने से ऐसा कहा है परंतु उद्वर्तन अंगीकार करके यहांपर व्याख्या नहीं की है।
पचीसवा शतक का चौथा उद्देशा
98