Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
२७३३
भावार्थ
जाव देवाणं सिद्धाणय पंचगती समासेणं कयरे पुच्छा ? गोयमा ! अप्पाबहुयं जहा बहुबत्तव्वयाए, अट्ठगइसमासअप्पाबहुगंच ॥ एएसिणं भंते ! सइंदियाणं एगिदियाणं जाव अणिदियाणय कयरे कयरे एवंवि जहा बहुवत्तव्वया तहेव ओहियं एवं भाणियव्वं
सकाइयअप्पाबहुगं तहेव ओहियं भाणियव्यं ॥ ४३ ॥ एएसिणं भंते ! जीवाणं गति का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! नरक गति यावत् सिद्ध गति में कौन अल्प बहुत यावत् विशेषाअधिक? अहो गौतम ! सब से थोडी मनष्यणी, मनुष्य संख्यात गने. डम से नेरिये असंख्यात गने. इस A
से तिर्यंचणी असंख्यात गुनी, इस से देवता असंख्यात गुने, इस से देवियों संख्यात गनी, इस से सिद्ध अनंत गुने. इस से तिर्यंच अनंत गुने. अहो मगवन ! सइन्द्रिय एकन्द्रिय यावत् अनेन्द्रिय में कौन अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक हैं ? अहो गौतम ! पन्नवणा के तीसरे पद अनुमार अल्पाबहुत जानना अर्थात सब से थोडे पंचेन्द्रिय, चौरेन्द्रिय विशेषाधिक, तेइन्द्रिय विशेषाधिक घेइन्द्रिय विशेषाधिक, अनेन्द्रिय अनंत गुने, एकेन्द्रिय अनंत गुने और सइन्द्रिय विशेषाधिक. अहो गौतम ! सकाय यावत् अकाय मे कौन किस से
अल बहुत यावत् विशेषाधिक ? अहो गौतम ! सब से थोडे त्रसकाय तेउकाय असंख्यात गुने, 12 पृथ्वीकाया विशेषाधिक, अप्काया विशेषाधिक वायुकाया विशेषाधिक, अमाया अनंत गुने व वनस्पति | काया अनंत गुने ॥ ४३ ॥ अहो भगवन् ! इन जीव पुद्गलों यावत सब पर्यव में कौन किस से अल्प ।
48+चमांग विवाहपण्मत्ति ( भगवती) मत्र 48
पञ्चीसवा शतकका तीसरा उद्देशा
+