Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
जहण्णेणं अंतोमुहुत्तदिईएसु उक्कोसेणं पुन्वकोडी आउएसु सेसं जहेब पुढवीकाइय उद्देसए, णवसुविगमएसु जहण्णेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं अट्रभवग्गणाई, द्विति कालादेसं च जाणेजा एवं ईसाणदेवेवि ॥ एवं एएणं कमेणं अवसेसा जाव सहस्सारो देवेमु उववाते णेयब्वो णवरं ओगाहणा, जहा ओगाहणा संठाणे ॥ लेस्सा सणंकुमारमाहिंदवंभलोएस, एगापम्हलेस्सा सेसाणं, एगा सुक्कलेस्सा, वेदे णो इत्थिवेदगा पुरिसवेदगा, णो णपुंसगवेदगा ॥ आऊअणुबंधा जहा ट्ठिइपदे, सेसं
जहेव ईसाणगाणं ॥ कायसंवेहं च जाणेजा ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ चउवीसइम वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व क्रोड. शेष सब पृथ्वीकाया का उद्देशा जानना. नवों गमा में भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट आठ भव. स्थिति और कालादेश इसका जानना. ऐसे ही ईशान का कहना. इसी क्रम से सहस्रार देवलोक के देवता पर्यंत का उपपात - कहना. परंतु अवगाहना वगैरह पनवणा के इक्कीसवे पद में जैसे अवगाहना संस्थान कहा जैसे ही कहना. सनत्कुमार माहेन्द्र व ब्रह्मदेवलोक में एक पत्र लेश्या. वेद में मात्र पुरुष वेद. स्त्री वेद व नपुंसक वेद नहीं. आयु अनुबंध स्थिति जैसे कहना. शेष सब ईशान जैसे कहना. कायासंबंध भी अपनी स्थिति अनुसार दोनों के भव मीलाकर कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह चौबीसवा.
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी
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