Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उववजति, सेसं तंचव जाव ईसाणदेवोत्ति एयाणिचेव णाणत्ताणि सणकुमारादीया जाव सहस्सारोत्ति जहेव पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय उद्देसए णवरं परिमाणं जहण्णेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा, उक्कोसेणं संखेज्जावा उववज्जति । उववातो जहण्णेणं वास
२६६४ पुहुत्त४िईएसु उक्कोसेणं पुत्वकोडी आउएसु उववज्जति, सेसं तंचव संवेहं मासपुहुत्त पुवकोडीमु करेजा ॥ सणंकुमारदिई चउगुणिया, अट्ठावीसं सागरोवमा भवंति, माहिंदे ताणिचेव सातिरेगाणि, बंभलोए चत्तालीसं, लतए छप्पण्णं, महासुक्के अट्ठसटुिं, सहस्सारेवावत्तरि सागरोवमाई, एसा उक्कोसाट्ठिई भणिया, जहण्णाटतीवि अंतर्मुहूर्त की स्थिति कही थी उस स्थान प्रत्येक मास कहना. परिमाण जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात शेष ईशान पर्यंत वैसे ही कहना. मनत्कुमार मे महस्रार पर्यंत नियेच पंचेन्द्रिय के दंडक में उत्पन्न होने का कहा वैने ही कहना परंतु परिमाण जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात कहना. उपपात जघन्य । प्रत्येक वर्ष उत्कृष्ट पूर्व कोड शेष वैसे ही कहना. संबंध प्रत्येक मास व पूर्व क्रोड कहना उपरांत सनत्कुमार की स्थिति चौगुनी अर्थात् अठावीस सागरोपम, माहेन्द्र की साधिक अठाइस सागरोपम, ब्रह्म देवलोक में, चालीस, लंतक छपन्न महाशुक्र अडसठ, सहस्रार में बहत्तर, यह उत्कृष्ट स्थिति कही. जघन्य स्थिति का
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखवसहायजी. चालाप्रसादजी *
भावार्थ