Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी +
तिहिं पुव्वकोडीहिं अन्भहियाइं, एवइयं कालं. ॥ एवं सेसेसुवि अट्ठगमएसु णवरं द्विती संवेहंच जाणेज्जा ॥ ८ ॥ जइ अणुत्तरोववाइय कप्पातीत वेमाणिय देवेहितो
उववज्जति किं विजयअणुत्तरोववाइयवेमाणिय, वेजयंतअणुत्तरोववाइय जाव । सव्वट्ठ सिद्धग अणुत्तरोक्वाइय कप्पातीत ? गोयमा ! विजय अणुत्तरोववाइय
कप्पातीत जाव सब्वट्ठ सिद्धग अणुत्तरोववाइय ॥ विजय वेजय जयंत अपराजित देवेणं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उववजे, सेणं भंते ! केवइयकालट्ठिई.
एवं जहेव गेवेजगदेवाणं णवरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं उक्कोसेणं अधिक उत्कृष्ट ९३ सागरोपम तीन पूर्वक्रोड अधिक, इतना काल यावत् करे. शेष आठोगमा में वैसेही करे. परंतु स्थिति व संबंध जानना. ॥ ८ ॥ यदि अनुक्त विमान में से उत्पन्न होवे तो क्या विजय अनुत्तर विमान में से वैजयंत अनुत्तर विमान में से या सर्वार्थ सिद्ध विमान में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! विजय अनुत्तर विमान यावत् सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तर विमान में से उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! विजय
वैजयंत, जयंत व अपराजित के देव मनुष्य में उत्पन्न होने योग्य होवे वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? * जैसे प्रैवेयक का कहा वैसे ही कहना. परंतु अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट एक हाथ.
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालामसादजी.
भावार्थ