Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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श्री अमोलक ऋषिजी gh
२६९३
भावार्थ
चउविहाणं देवीणं मीसगं अप्पाबहुगंच ॥ १ ॥ कइविहाणं भंते ! संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता? गोयमा! चउद्दसविहा संसार समावण्णगा जीवा पण्णता,तंजहा सुहुम अपजत्तगा, मुहुम पज्जत्तगा, वादर अपजत्तगा, वादरापजत्तगा, वेइंदिया अपज्जत्तगा, वेइंदिया पजत्तगा, एवं तेइंदिया, एवं चउरिंदिया, असण्णिपंचिंदिया अपजत्तगा, असण्णिपंचिंदिया पजत्तगा सणिपंचिंदिया अपज्जत्तगा, सण्णिपंचिंदिया पजत्तगा,॥२॥
एएसिणं भंते ! चउद्दसाविहाणं संसारसमावण्णगाणं जीवाणे जहण्णुक्कोसगस्स कौन कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेझ्यावाले में अल्प बहुत याचन् विशेषाधिक है ऐसा कहना ॥ १ ॥ लेण्याबंत संसारी होने से संसारी का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! संसारी जीवों कितने कहे हैं ? अहो । E गौतम ! चउद्रह प्रकार के संसारी जीवों कहे हैं. जिन के नाम-१ सूक्ष्म के अपर्याप्त २ सूक्ष्म के पर्याप्त ३ बादर के अपर्याप्त ४ वादर के पर्याप्त ५ वेइन्द्रिय के अपर्याप्त ६ बेइन्द्रिय के पर्याप्त ७ तेइन्द्रिय के अपर्याप्त ८ तेइन्द्रिय के पर्याप्त ९ चतुरेन्द्रिय के अपर्याप्त १० चतरोन्द्रिय के पर्याप्त ११ असंज्ञी पंचेन्द्रिय
के अपर्याप्त १२ असंज्ञी पंचेन्द्रिय के पर्याप्त २३ संबी पंचेन्द्रिय के अपर्याप्त और १४ संझी पंचेन्द्रिय के में पर्याप्त ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! इन चौदह प्रकार के संसारी जीवों को जघन्य उत्कृष्ट जोगे में कौन
१ वीतिराय के क्षयोपशमसे उत्पन्न हुवा कयिकाद्रि परिस्पंदन लक्षण सौ जोग,
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी