Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
जुम्म समयठिईए जाव सियकलिओगसमयठिईए; एवं जाव आयते ॥ २३ ॥ परिमंडलाणं भंते ! संठाणा किं कडजुम्म समयठिईया पुच्छा ? गोयमा ! ओघा देसेणं सियकडजुम्म समयठिईया जाव सियकलिओग समयठिईया ॥ विहाणादेसेणं कडजुम्म समयठिईयावि जाव कलिओग समयठिईयावि, एवं जाव आयता ॥२४॥ परिमंडलेणं भंते ! संठाणे कालवण्णपज्जवेहिं किं कडजुम्मे जाव कलिओगे ? गोयमा : सियकडजुम्मे एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ठिईए ॥ एवं णीलवण्ण पजवेहि, एवं पंचहि वण्णेहिं,दोहिं गंधेहिं पंचहिं रसेहि, अट्टहिं फासेहिं जाव लुक्खफास स्थितिवाले हैं ऐसे ही आयत संस्थान पर्यंत कहना ।। २३ ॥ अहो भगवन् ! परिमंडल संस्थान क्या कृतयुग्म समयकी स्थितिबाले पृच्छा ? अहो गौतम ! औधिक आश्री स्यात् कृतयुग्म समयकी स्थितिवाले स्यात् कलि युग्मसययकी स्थितिवाले. और विधाना देश से कृतयुग्म समय की स्थितिबाले यावत् कलि
युग्म समय की स्थितिवाले. ऐसे ही आयत संस्थान पर्यंत कहना ॥ २४ ॥ अहो भगवन् ! परिमंडल " संस्थान काला वणे पर्यव मे क्या कृतयुग्म यावत् कलि युग्म ? अहो गौतम! स्यात् कृतयुग्म ऐसे ही इस
क्रम से जैसे स्थिति का कहा वैसे ही कहना. ऐसे ही नील वर्ण पर्यव की साथ जानना. ऐसे ही पांच
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ