Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पनवेहि ॥ २५ ॥ सेढीओणं भंते ! दवट्टयाएणं किं संखेजाओ असंखेजाआ अणंताओ ? गोयमा ! णो संखजाओ णो असंखज्जाओ अणंताओ । पाईणपडीणायताओणं भंते ! सेढीए दवट्टयाए किं संखेजाओ एवंचेव ॥
. २७१५५ एवं दाहिणुत्तरायताओवि, एवं उद्दु महायताओकि ॥ २६ ॥ लोगागाससेढीओणं भंते ! दबट्टयाए किं संखेजाओ असंखेजाओ अणंताओ ?. गोयमा! णो संखेजाओ असंखेजाओ णो अणंताओ॥ पाईणपडीणायताओणं भंते ! लोगा गाससेटीओ दवट्टयाए कि संखेजाओ एवंचव ॥ एवं दाहिण उत्तरायताओवि ॥
एवं उड्ढमहायताओवि, ॥ २७ ॥ अलोगागाससेढीओणं. भंते ! दब्बट्टयाए. किं भावार्थ वर्ण, दो गंध, पांच रस आठ स्पर्श यावत् रूक्ष स्पर्श की साथ कहना ॥ २५ ॥ अहो भगवन् ! द्रव्य से
श्रेणी क्या संख्यात असंख्यात या अनंत हैं ? अहो गौतम ! संख्यात असंख्यात नहीं परंतु अनंत .
श्रेणियों हैं. ऐसे ही पूर्व पश्चिम की श्रेणी, उत्तर दक्षिण की श्रेणी व ऊर्ध्व अधो की श्रेणी का जानना 8 ॥ २० ॥ अहो भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियों द्रव्य से क्या संख्यात असंख्यात या अनंत हैं मोक
गौतम ! संरूपात व अनंत नहीं हैं परंतु असंख्यात श्रेणियों हैं. ऐसे ही पूर्व पश्चिम, उचर दक्षिण ।
पण्णारी ( भगवती ) मूत्र
पचीसवां शतक का तीसरा उद्देशा