Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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41 मनुवादक-चालनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
संखजाओं असंखेजाओं पुच्छा ? गोयमा! णो संखेनाओं णो असंखेजाऔ अण ताओ ॥ एवं पाईणपडीणायताओवि ॥ एवं दाहिणुत्तरायताओवि ॥ एवं उड्डमहा यताओवि ॥ २८ ॥ संढीएणं भंते ! पदेसट्टयाए किं संखजाओ ? जहा दन्वट्ठयाए. |२७२६ तहा पदेसट्टयाएवि जाव उदुमहायताओवि सन्याओ अणंताओ ॥ २९ ॥ लोगा . गास सेढीओणं भंते ! पएसट्टयाए किं संखेज्बाओ पुच्छा ? गोयमा ! सिय संखेजाओ सिय असंखेजाओ जो अणंताओ एवं पादीणपदीणायताओवि ॥
एवं दाहिणुत्तरायताओवि ॥ एवंचव उदुमहायताओ णो संखेजाओ असंखेजाओ ऊर्ष भयो की श्रेणी का जानना ॥ २७ ॥ अष्टो भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियों द्रव्य से क्यान संरूपात असंख्यात या अनंत हैं ? अहो गौतम ! संख्यात असंख्यात नहीं परंतु अनंत हैं. ऐसे ही पूर्व पश्चिम, उत्तर दक्षिण व ऊर्ध्व अधो का जानना ॥ २८ ॥ अहो भगवन् ! प्रदेश से श्रेणी क्या संख्यात असंख्यात या अनंत हैं ? अहो गौतम ! जैसे द्रव्य का कहा वैसे ही प्रदेश का कहना यावत् ऊर्ध्व अधो सब अनंत ॥ २० ॥ अहो भगवन् ! लोकाकाश श्रेणी प्रदेश से क्या संख्यात है वगैरह पृच्छा ? अहो गौतम ! स्यात् संख्यात स्यात् असंख्यात हैं. परंतु अनंत नहीं हैं. ऐसे ही पूर्व पश्चिम, व
काशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालामसादजी*
भावार्थ