Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
+3 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
-वाधार्य पहुंच सिय तिदिसि सिय चउद्दिसिं सिय पंचाद्दिसिं ॥ ६ ॥ लोगस्सणं भंते ! एगम्मि आगासपए से कइदिसिं पोग्गला चिजंति ? एवंचेत्र एवं उवचिजंति, एवं अवचिज्जति ॥ ७ ॥ जीवणं भंते! जाई दव्बाई ओरालिय सरीरत्ताए गेण्हर, ताई किं द्वियाई गेहइ अट्टियाई गेव्हइ ? गोयमा ! ट्टियाईवि गेव्हइ अट्ठियाईवि गेण्ह३, ताइ भंते! किं दव्यओ गेव्हइ, खेत्तओ गेण्हइ, कालओ गेव्हइ. भावओ गेण्हइ ? गोयमा ! दव्वओवि गेण्हइ, खेत्तओवि गेण्हइ, कालओवि गेण्हइ, भावओवि गेव्हइ
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अहो भगवन् ! जीव जिन
होने से क्वचित् चार और क्वचित् पांच दिशा के पुद्गल चिनाते हैं ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! टांक के एक आकाश में कितनी दिशा के पुद्गल छेढ़ाते हैं-व्यतिरिक्त होते हैं ? जैसे एकत्रित करने का कहा वैसे ही कहना. ऐसे ही पुहुल की वृद्धि होने का व हानि होने का कहना ॥ ७ ॥ द्रव्यों को उदारिक शरीरपने ग्रहण करता है उन द्रव्यों को क्या स्थिति के क्षेत्र के भर्ती ] पने ग्रहण करता है या अस्थितिकपने ग्रहण करता द्रव्य भी ग्रहण करता है और अस्थितिक द्रव्य भी ग्रहण करता है.
[ जीव प्रदेश के अवगाहनादि ? अहो गौतम ! स्थितिक अहो भगवन् ! उन को क्या
द्रव्य से ग्रहण करता है, क्षेत्र से ग्रहण करता है, काल से ग्रहण करता है या भाव से ग्रहण करता है ?
* मकाशक - राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
२००४