Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
4.३०*> पंचमाङ्ग चित्राह पण्णत्त ( भगवति ) सूत्र ++
जीवेण भंते ! जाई दव्बाई आणापाणुत्ताए गेव्हंति, जहेब ओरालिय सरीरत्ताए जाव सिय पंचदिसिं ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ! केइ चउवीस दंडएणं एयाणि पदाणि भण्णंति: जस्स जं अस्थि || पणवीसंइमस्स वितिओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ २५ ॥ २ ॥ कइविणं भंते ! संठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! छ संठाणा पण्णत्ता तंजहा - परिमंडले वट्टे तसे चउरंसे आयते अणित्थत्थे || १ || परिमंडलाणं भंते ! संद्वाणा दव्बट्टयाए किं संखेजा असंखेज्जा अनंता ? गोयमा! णो संखेज्जा णो असंखेजा अनंता ॥ वट्टाणं भंते!
भगवन् ! जीव जो द्रव्य श्वासोश्वासपने ग्रहण करे वगैरह सब उदारिक शरीर जैसे यावत् स्यात् पांच दिशी. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. कितनेक चौवीस दंडक में उक्त पदों जिन को जो होवे {उनको कहना. ऐसा कहते हैं. यह पच्चीसवा शतक का दूसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा || २५ ॥ २ ॥
दूसरे उद्देशे में द्रव्य से पुद्गल का कथन कीया वे प्रायः संस्थानवंत होने से यहां पर संस्थान की पृच्छा करते हैं. अहो भगवन् ! संस्थान के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! संस्थान के छ भेद कहे हैं ? परिमंडल संस्थान २ वृत्तसंस्थान ३ त्र्यंसंस्थान ४ चौरस ५ आयात और ६ अनित्यस्थ ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! परिमंडल संस्थान द्रव्य से क्या संख्यात हैं, असंख्यात या अनंत हैं ? अहो गौतम ! संख्यात
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८००० पच्चीसना शतक का तीसरा उद्देशा +
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