Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ |
** पंचमांग विवाह पञ्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 400
एसिए असंखेज परसोगाढे ॥ १२ ॥ परिमंडलेपणं भंते! संठाने दव्वट्टयाए किं कडजुम्मे तेओए दावरजुम्मे कलिओए ? गोयमा ! णो कडजुम्मे णो तेयोगे णो दावरजुम्मे कलिओए || बट्टेणं भंते! संद्वाणे दव्वट्टयाए एवंचेव, एवं जाव आयते ॥ परिमंडलाणं भंते! संट्टाणा दव्वट्टयाएं किं कडजुम्मा तेओगा पुच्छा ? गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, सिय तेओगा, सिय दावरजुम्मा सिय कलिओगा ॥ विहानासे णो कडजुम्मा, जो तेओगा, जो दावरजुम्मा, कलिओगा, एवं जाब आयता ॥ १३ ॥ परिमंडलेणं भंते! संठाणे पदेमट्टयाए किं कडजुम्मे पुच्छा ? गोयमा !
[गाही ॥ १२ ॥ अहो भगवन् । परिमंडल संस्थान द्रव्य से क्या कृतयुग्म, त्रेता, द्वापर या कलि युग्म अहो गौतम ! परिमंडल संस्थान कलियुग्मवाले हैं. परंतु कृत, त्रेता व द्वापर { युग्मवाले नहीं हैं. ऐसे ही वृत्त यावत् आयत संस्थान का आश्री कहते हैं. अहो भगवन् ! परिमंडल संस्थान द्रव्य से क्या कृत युग्म, द्वापर, त्रेता कलियुग्म हैं ? अहो गौतम ! समुच्चय आश्री परिमंडल संस्थान स्यात् कृत युग्म, स्यात् त्रेता, स्यात द्रापर व स्थात कलि युग्म है. विधान से (विशेषता से) कृत, त्रेता व द्वापर नहीं है परंतु एक कलि युग्म है. ऐसे ही आयत
जानना. अब समुच्चय
4- पचीसवा शतक का तीसरा उद्देशा 48+
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