Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र +8+
শান ঃ
ताई दव्वओ अणंतपएसियाई दवाई खेत्तओ असंखेजप:सांगाढाई, एवं जहा । पण्णवणाए पढमे आहारुदेसए जाव णिवाघाएणं छद्दिसिं, याघाइं पडुच्च सिय तिदिसि, सियचादीस, सियपंचदिसि ॥ ८ ॥ जीवेणं भंते ! जाइं दव्वाइं वेउव्विय सरीरत्ताए गेहंति ताई किं ट्रियाई ? एवंचेव णवरं णियमं छदिसि ॥ एवं आहारगसरीरत्ताएवि। ॥ ९॥जीवेणं भंते ! जाई दवाई तेयगसरीरत्ताए गेण्हंति पुच्छा ? गोयमा ! ट्ठियाई गेण्हति, णो आट्टियाई गेण्हंति, सेसं जहा ओरालियसरीरस्स. कम्मगसरीर अहो गौतम ! द्रव्य से ग्रहण करता है, क्षेत्र से ग्रहण करता है, काल मे ग्रहण करता है, और भाव से भी ग्रहण करता है. द्रव्य से अनंत प्रदेशिक द्रव्य ग्रहण करता है, क्षेत्र मे असंख्यात प्रदेशावगाडित भी ग्रहण करता है. यों जैसे पन्नवणा मूत्र के पहिले आहार उद्दशा में कहा यावत् निर्व्याघात मे छ दिशा के व्याघात से स्यात् तीन स्यात् चार व स्यात् पांचों दिशा के पुद्गल ग्रहण करते हैं अहो भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को क्रेय शरीरपने ग्रहण करता है वे क्या स्थितिक हैं या अस्थितिक हैं ? ऐसे ही कहना. परंतु नियमा छ दिशी के पुद्गलों ऐसे ही आहारक शरीर का जानना ॥१॥ अहो भग-31 वन् ! जीव जो द्रव्य तेजसू शरीरपने ग्रहण करता उन्हें क्या स्थितिक ग्रहण करता है या अस्थितिक ग्रहण करता है ? अहो गौतम ! स्थितिक शरीरपने ग्रहण करता है परंतु अस्थितिक शरीरपने नहीं ग्रहण
पच्चीसवा शतक का दूभर
1 उद्देशा १
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