Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जहण्णेणं बत्तीस पएसिए बत्तीस पएसोगाढे पण्णत्ते उक्कोसेणं अर्णत पएसिए असंखेज' पएसोगाढे पण्णत्ते. ॥ ८ ॥ तंसेणं भंते ! सट्टाणे कति पदेसिए कतिपदेसोगाढे पण्णत्ते ? गोयमा ! तंसेणं संढाणे दुविहे पण्णत्ते; तंजहा घणतंसेय, पयरतंसेय ॥ तत्थणं जे से पयरतंसेय से दुविहे पण्णत्ते, तंजहा ओयपएसिएय जुम्मपएसिएय ॥ तत्थणं जे से आयपएसिए से जहण्णेणं तिपदेसिए तिपदेसोगाढे पण्णत्ते ॥ उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेजपएसोगाढे पण्णत्ते ॥ तत्थणं जे से जुम्म पएसिए से जहणेणं छप्पतिए छप्पदेसोगाढ पण्णत्ते, उक्कोसेणं अणंत
पदेसिए असंखेजपएसोगाढे पण्णत्ते ॥ तत्थणं जे ते घणसंसे से दुविहे पण्णत्ते, IF नो युग्म प्रदेशिक है वह जघन्य बत्तीस प्रदेशिक व वसीमप्रदेशावगाही है उत्कृष्ट अनंत प्रदेशिक व
असंख्यात प्रदेशावगाही हैं ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! यस संस्थान कितने प्रदेशिक व कितने प्रदेशावगाही है ? अहो गौतम ! त्र्यंत संस्थान के दो द कहे हैं. १ घनत्र्यंत व २ प्रतर ऽयंस. उस में प्रतर
यंस के दो भेद कहे हैं ओज मदेशिक व युग्म प्रदेशिक. जो ओज प्रदेशिक है वह जघन्य तीन मदेशिक | तीन प्रदेशावगाही और उत्कृष्ट अनंत प्रदेशिक असंख्यात प्रदेशावगाही और युग्म प्रदशिक जमन्य
१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
*काशक राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ