Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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७.२
१ अनुवादक-वालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ओरालियं वेउम्वियं आहारगं तेयर्ग कम्मर्ग, सोइदियं जाव फार्सिदियं, मणजोगं वइजोगं कायजोगं आणापाणुत्तं च णिन्वत्तति. से तेणट्रेणं जाव हब्वमागच्छति॥३॥ णेरइयाणं भंते ! अजीवदवा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अजीवदव्याणं णेरइया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! णेरइयाणं अजीवदव्वा परिभोगत्ताए जाव हब्बमागच्छंति, णो अजीवदव्वाणं णेरड्या जाव हव्वमांगच्छंति ॥ से केणटेणं भंते? गोयमा! जेरइयाणं अजीवदब्वे परियादियंति अजीवदव्वे परियादियंतित्ता वेउब्वियं तेयगं कम्मगं सोइंदियं जाव फासिंदिय आणापाणुतं च णिवत्तयंति से सेणटेणं गोयमा ! और अजीव ट्रध्य ग्रहण करके उदारिक, वैक्रेय, आहारक, तेजस्, कार्माण शरीर, श्रोबेन्द्रिय यावत् | स्पर्शेन्द्रिय, मन योग, वचन योग, काया योग और श्वासाश्वास बानते हैं इस से जीव द्रव्य को अभीव द्रव्य उपभोग में आते हैं ॥३॥ अहो भगवन् ! नारकी को क्या अजीब द्रव्य उपभोग में आते हैं या . अजीव द्रव्य को नारकी उपभोग में आते हैं ? अहो गौतम ! नारकी को अजीव द्रव्य उपभोग में आते हैं हैं परंतु अजीव द्रव्य को नारकी उपभोग में नहीं आते हैं. अहो भगवन् ! किम कारन से ऐमा कहा गया है ? अहो गौतम ! नारकी अजीव द्रव्य ग्रहण करते हैं. अजीव द्रव्य ग्रहण करके वैक्रेय, सेजस्,
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी -
भावार्थ