Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुबादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
कइविहाणं भंते ! दव्वा पण्णत्ता ? गोयमा , दुविहा दव्या पण्णत्ता तंजहा-जीव दव्याय अजीव दव्याय अजीव देव्वाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-रूवी अजीव दव्वाय, अरूवी अजीव दव्याय ॥ एवं एएणं अभिलावेणं जहा अजीवपजवा जाव से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ, तेणं णो संखेजा णो असंखेज्जा अणंता ॥ १ ॥ जीव दवाणं भंते ! किं संखेजा असंखेजा अणता ? गोयमा ! णो संखेजा णो असंखेजा अर्णता ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जीव प्रथम उद्देशे में लेश्या आदि परिणाम कहा, लेश्या भी द्रव्य होने से द्रव्य का प्रश्न पूछते हैं. अहो । भगवन् ! द्रव्य के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम! द्रव्य के दो भेद कहे हैं १ जीवद्रव्य व २ अजीव द्रव्य. अहो भगवन् ! अजीव द्रव्य के कितने भेद कडे हैं ? अहो गौतम ! अजीव द्रव्य के दो भेद कहे हैं ? रूपी अजीव द्रव्य व अरूपी अजीव द्रव्य, इस अभिलाप से जैसे पन्नवणा सूत्र के पांचवे पद में अजीव पर्यव कहें वैसे ही कहना यावत् इसलिये ऐसा कहा गया कि वे संख्यात असंख्यात नहीं हैं परंतु अनंत हैं. ॥ १॥ अहो भगवन् ! जीव द्रव्य क्या संख्यात, असंख्यात या अनंत हैं. ? अहो गौतम ! जीव द्रव्य संख्यात असंख्यात नहीं परंतु अनंत हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से जीव द्रव्य संख्यात.
* प्रकाशक-राजाबहादुरै लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी .