Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 48+
असंखेजगुणे ॥ ८॥ ओरलियमसिगस्स ॥ वेउब्वियमीसगस्स ॥ एएसिणं उक्कोसए जोए दोण्हवि तुल्ले असंखेज्जगुणे ॥ ९.१०॥ असच्चामोसमणजोगस्स जहण्णए जोए असंखजगुणे ॥ ११ ॥ आहारगस्स सरीरस्स जहण्णए जोए असंखेजगुणे ॥ १२ ॥ तिविहस्स मणजोगस्स दउव्विहस्स वइजोगस्स एएसिणं सत्तण्हवि तुल्ले जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ॥ १३ ॥ आहारगसरीरस्स उक्कोसए जोए असंखजगुणे ॥१४॥ ओरालियसरीरस्स वेउन्वियसरीरस्स चउन्विहस्सय मणजोगस्स चउन्विहस्सय वह जोगस्स, एएसिणं दसण्हवि तुल्ले, उक्कोसए जोए असंखेजगुणे ॥ १५ ॥ सेवं भंते
भंतेत्ति ॥ फ्णवीसइम सयस पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २५ ॥ १ ॥ उत्कृष्ट जोग असंख्यात गुना, इस से उदारिक व वैक्रेय के मीश्र इन दोनों का उत्कृष्ट योग परस्पर तुल्य व असंख्यात गुना, इस से व्यवहार पनं योग का जघन्य योग असंख्यात गुना इस से आहारक शरीर जघन्य योग असंख्यात गुना इस से तीन मन योग व चार वचन इन सातों का जघन्य योग परस्पर । व असंख्याव गुना, इस से आहारक शरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना, इस से उदारिक, वैक्रेय, शरीर, चार मन योग व चार वचन योग इन दश के उत्कृष्ट योग परस्पर तुल्य व असंख्यात गुने. भगवन ! आप के वचन सत्य हैं, यह पञ्चीमका शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण दुवा. ॥ २५ ॥१॥
पच्चीसवा शतक का पहिला उद्देशा
भावार्थ
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