Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवत
. दवाणं णो संखेज्जा णो असंखेजा अर्णता ? गोयमा ! असखेज्जा रइया जाव
असखज्जा वाउकाइया, अणंता वणस्सइकाइया, असंखेजां वेइंदिया एवं जाव वेमाणिया, अणंता सिद्धा, से लेण?णं जाव अणंता ॥ २ ॥ जीवदव्वाणं भंते ! अजीव
दव्या परिभोगत्ताए हब्वमागच्छंति, अजीव दव्याणं जीवदव्या परिभोगत्ताए हव्वमा .. गच्छंति ? गोयमा ! जीव दव्वाणं अजीवदव्या परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, णो
अनीवदव्वाणं. जीवदया: परिभोगत्ताए हव्यमागच्छंति ॥ से केणटेणं भंते ! एवं
बच्चइ जाव मागच्छंति ? गोयमा! जीवदव्याणं अजीवदव्व परियादियंति, अजीव२त्ता परंतु अनंत कहे हैं. ? अहो गौतम ! असंख्यान नारकी यावत् असंख्यात वायुकाया, अनंत वनस्पतिकाया,
ख्यात बेदन्द्रिय यावत् वैमानिक और अनंतसिद्ध इसलिये ऐसा कहा गया है यावत अनंत जीव द्रव्य हैं ॥ २ ॥ जीव द्रव्य को क्या अजीव उपभोग में आते हैं या अजीव द्रव्य को जीव द्रव्य उपभोग में आते हैं ? अहो गौतम ! जीव द्रव्य को अजीव द्रव्य उपभोग में आते हैं परंतु अजीब इन्य को जीव द्रव्य उपभोग में नहीं आते हैं. अहो भगवन् ! ऐमा किस कारन से कहा गया है यावत् अजीव } 90 द्रव्य को जीव द्रव्य उपभोग में नहीं आते हैं ? अहो गौतम ! जीव द्रव्य अजीव द्रव्य को ग्रहण करते हैं |
पच्चीसवा शतक का दूसरा उद्दे वा १४
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