Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
42 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
'अप्पा उक्कोस कालठिईओ जाओ एसचेव बत्तव्वया, णचरं ओगाहणा जहणणं पंच हसयाई उक्कोणवि पंचधणुहसयाई, ठिई जहण्णेणं पुव्वकोडी उक्कोसे वि पुत्र कोडी ॥ सेसं तहेव जाव भवादेसोति ॥ कालादेसेणं जहण्णेणं तेतीसं सागरोमाई दोहिं पुष्वकाडाहिं अन्महियाई, उक्कोसेणवि तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अमहियाई. एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेजा ॥ एए तिणि गमगा सव्वसिद्धग देवाणं || मेवं भंते ! भंतेत्ति, भगवं गोयमे जाव विहरइ ॥ चउवीसइमसयस्स चउवीसइमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ २४ ॥ चवीसइमं सयं सम्मत्तं ॥ २४ ॥
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अधिक. इतना यावत् करे. वही जघन्य स्थितिवाला उत्पन्न हुवा वैसे ही वक्तव्यता कहना परंतु ( अवगाहना प्रत्येक हाथ और स्थिति प्रत्येक वर्ष शेषं वैसे ही कहना | १५ || वही उत्कृष्ट स्थितिवाला ( उत्पन्न हवा वही वक्तव्यता कहना परंतु अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट पांचसो धनुष्य कहना. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट पूर्व क्रोड कहना शेष भत्रादेश पर्यंत वैसे ही कहना. कालादेश से जघन्य उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम दो पूर्व फोड अधिक इतना काल करे व इतनी गति आगति करे. ये तीन गमा सर्वार्थ सिद्ध देव के कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यों कहकर भगवान् गौतम विचरने लगे. यह चौवी सवा शतक का चौवीसवा उद्देशा संपूर्ण हुत्रा ॥ २४ ॥ २४ ॥ यह चौवीसवा शतक संपूर्ण हूवा ॥ २४ ॥
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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