Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १९एवं तेइंदियस्सवि २० एवं चरिंदियस्सवि २१ एवं जाव सणिपंचिंदियस्स अपजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगणे २३ वेइंदियस्स पजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २४ एवं तेइंदियस्सवि २५ एवं जाव सणिपंचिंदियस्स पजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २८ ॥३॥ दो भंते ! णेरइया षढमसमय उववण्णगा किं समजोगी विसमजोगी ?
गोयमा ! सिय समजोगी सिय विसमजोगी ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सिय भावार्थ इस से बेइन्द्रिय के अपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना २० इस से तेइन्द्रिय के अपर्याप्त का
उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना २१ इस से चतुरेन्द्रिय के अपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना २२ इस से असंही पंचेन्द्रिय के अपर्याप्त का उस्कृष्ट योग असंख्यात गुना२३ इस से संबी पंचेन्द्रिय के अप-१ र्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना २४ इस से बेइन्द्रिय के पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना २५ इस से तेइन्द्रिय के पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना २६ इस से चतुरेन्द्रिय के पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना २७ इस से असंही पंचेन्द्रिय के पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना
और २८ इस से संबी पंचेन्द्रिय के पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् । पहिले 1-समय में उत्पन्न होने वाले दो नारकी क्या समयोगी हैं या विषम योगी हैं ? अहो गौतमः स्यात् समयोगी?
पंचमांग विवाह पञ्णत्ति ( भगवती
48 पचीसवा शतकका पहिला उद्देशा 498