Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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- पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र Jagran
जोगस्स कयरे कयरे जाव विसेसाहियावा? गौयमा! सव्वत्थोवा सहुमस्स अपजत्तगस्स जहण्णए जोए १ बादरस्स अपज्जत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेजगुणे २ वेइंदियस्स अपजत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेजगुणे ३ एवं तेइंदियस्स ४ एवं चरिंदियस्स ५ असण्णिपंचिंदियस्स अपजत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेजगुणे ६ सण्णिपंचिंदियस्स
अपजत्तगस्स जहण्णए जोए असंखेजगणे ७ सहमपज्जत्तगस्स जहण्णए जोए अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक है ? अर्थात् चौदह प्रकार के जघन्य और उत्कृष्ट ऐसे दो भेद करने से भी २८ हुए. इन अठावीस में कौन किससे अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक हैं ! अहो गौतम ! सब से थोडा मूक्ष्म है। अपर्याप्त का जघन्य जोग क्यों कि सूक्ष्म पृथिव्यादिकं का शरीर मूक्ष्म और अपर्याप्तपना से विशेष सूक्ष्म के
उस में भी जघन्य की विनक्षा हुई, इस से सर्व वक्तव्यता जोग से थोडा जघन्य नोग हुवा यह जोग 5 विहार गति में कार्माण उदारिक पुद्गल ग्रहण करते समय रहता है फीर समय की वृद्धि होते जघन्य उत्कृष्ट
जोग होवे परंतु सर्वोत्कृष्ट जोग होवे नहीं. इस से २ बादर अपर्याप्त का जघन्य जोग पूर्वोक्त अपेक्षा से असंख्यात गुना. ३ इस से बेइन्द्रिय के अपर्याप्त का जघन्य जोग असंख्यात गुना ४ इस से तेइन्द्रिय के अपर्याप्त का जघन्य जोग असंख्यात गुना ५ इस से चतुरेन्द्रिय के अपर्याप्त का जघन्य जोग असंख्यात गुना ६ इस से असंज्ञी पंचेन्द्रिय के अपर्याप्त का जघन्य जोग असंख्यात गुना ७ इस से संज्ञी पंचेन्द्रिय
4800 पच्चीसवा शतक का पहिला उद्देशा 4883
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