Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
२४९१
पंचांग विवाह पण्णचि ( भगवती ) सूत्र 4982
भावार्थ/
* पञ्चविंशतितम शतकम् * लेस्साय,दव्य, संठाण, जुम्म, पजव, णियंठ, समणाय, ॥ ओहे भविया भविए सम्मा, मिच्छेय, उद्देसा ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी कइणं भंते! लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ, तंजहा कण्हलेस्सा जहा पढमसए बितिय उद्देसए तहेव लेस्साविभागो अप्पावहुगंच जाव चउन्विहाणं देवाणं
चौवीसवे शतक में द्वार से जीव का उपपात का चितवन किया. अब पच्चीसवे शतक में जीव का लेश्या | द्वार से चितवन करते हैं. इस शतक में बारह उद्देशे कहे हैं जिन के नाम-१ लेश्या का २ द्रव्य विचार | ३ स्थान विचार " कृत युग्य विचार, ५.पर्याय विचार ६ पुलाकादि निर्ग्रन्थ विचार ७ सामायिकादि . संयति का विचार ८ नरकादि औधिक उत्पत्तिका ९ भव्यादि विशेषणबाले नारकादि उत्पन्न होने १० अभव्यपने बर्तने की ११ समदृष्टि और १२ मिथ्यादृष्टि का. यों पच्चीसवे शतक में बारह उद्देशे कहे. अब पहिला उद्देशा कहते हैं. उस काल उस समय में राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में श्री श्रमण, भगवंत महावीर स्वामी भगवान गौतम को ऐमा बोले अहो भगवन् ! लेश्या कितनी कही ? अहो गौतम ! लेश्याओं छ कही जिन के नाम. कृष्ण लेश्या वगैरह जैसे प्रथम शतक के दूसरे उद्देशे में कहा बैसे ही लेश्या का विभाग और अल्पाबहुत्व कहना यावत् चार प्रकार के देव व चार प्रकार की देवी यों
+8+ पच्चीसवा शतक का पहिला उद्देशा 488th