Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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387 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र 48
लद्धी वसुवि गमएसु जैहा गैवेजेस उववजमाणस्स णवरं पढमं संघयणं ॥ १४ ॥ सय? सिद्धगदेवाणं भंते ! कओहिंतो उववजति उववाओ जहेव विजयादीणं जाव मेणं भंते ! केवइयकाल ठिईएसु उववजेजा ? गोयमा ! जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमठिई उक्कोसेणवि तेत्तीसं सागरोवमठिईएसु; अक्सेसा जहा विजयाईसु उववजंता,णवरं भवादेसेणं तिण्णि भवग्गहणाई, कालादेसणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं वासुपहुत्तहिं अब्भहियाई उक्कोसेणवि तेत्तीसं सागरोवमाइंदोहिं पुवकोडीहिंअन्भहियाई,एवइय।सोचेव अप्पणा जहण्ण कालठिईओ जाओ एसचेव वत्तव्वया,णवरं ओगा
हणा ठिईओ रयणिपुहुत्तंच, वासपुहुत्ताणि, सेसं तहेव संवेहंच जाणेज्जा ॥१५॥ सोचेव क्रोड अधिक शेष पूर्वोक्त जैसे कहना ऐसे ही आठ गमा करना. परंतु स्थिति व संबंध इसकाही कहना. नवों गमा में मनुष्य लब्धि प्रैधेयक विमान जैसे कहेना. परंतु संघयन पहिला जानना ॥ १४ ॥ अहो भगवन सर्वार्थ सिद्ध में कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! विजयादि में जैसे उपपात कहा वैसे ही कहना है यावत् वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे?अहो गौतम!जघन्य तेत्तीस सागरोपम उत्कृष्ट भी तेत्तीस सागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होवे सब विजयादि में उत्पन्न होने का कहा वैसे ही कहना परंतु भवादेश से तनि भत्र कालादेश से जघन्य तेत्तीस सागरोपम दो प्रत्येक वर्ष अधिक उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम दो पूर्व क्रोड
ago चौवीसवा शतक का चौबीसवा उद्देशा 42th
भावार्थ
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