Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी "
संहेवंच जाणेजा उसु चेव संघयणा तिण्णि आणयादीमु।। १२॥ गेवेजग देवाणं भंतेकओ हितो उववज्जति एसचेव वत्तव्वया णवरं दो संघयणाट्ठिति संवेहं च जाणेजा॥१३॥ विजय वेजयंत जयंत अपराजित देवाणं भंते! कओहिंतो उववजांति एसचेव वत्तन्वया गिरवसेसा जात्र अणुबधोत्ति, गवरं पढम संघयणं सेसं तहेव भवादेसेणं जहणेणं तिरिम भवग्गहणाई उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई, कालादेसेणं. जहण्णेणं एकतीसं सागरोवमाई दोहिं वासपुहत्तेहिं अब्भहियाई,उकोसणं छावर्द्धि सागरोबमाइं तिहिं पुन्चकोडीहिं अब्भहिंयाई
एवइयं जावाएवं सेसावि अट्ठ गमगा भाणियब्बा,णवरं द्विति संवेहंच जाणेना ॥मणूसे अधिक ऐसे ही शेष आठ ममा कहना परंतु स्थिति व संबंध इस अनुसार कहना ऐमे ही अच्युतः पर्यंत कहना. आणतादि चारों में तीन संघयन कहना. ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! अवेयक देव में कहां से उत्पमा होते हैं ? अहो गौतम उपर्युक्त वक्तव्यता कहना परंतु स्थिति व संबंध इसकाही जानना. ॥ १३ ॥ अहो है
भगवन् ! विजय, वैजयंत, जयंत व अपराजित देवों में कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! उपर्युक्त कवकव्यता अमुबंध पर्वत कहना संघयन मात्र एक पहिला कहना. भादेश से जघन्य तीन भव उत्कृष्ट
पांच भव कालादेश से जघन्य इकत्तीस सागरोपम दो प्रत्येक वर्ष अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपमा तीन पूर्व
• प्रकाशक राजावादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *