Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायत्री ज्वालाप्रसादमी *
विगमगा वरं द्वितिं संवेहंच जाणेजा, जाहे अप्पणा जहण्णंकालाट्ठईओ भवइ, ताहे तिसु गमएसु सम्मद्दिट्ठीवि, मिच्छाद्दिट्ठीवि, णो सम्मामिच्छाद्दिट्ठी ॥ दोणाणा दो अण्णाणा णियमं, सेसं तंचेव ॥६॥ जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति भेदो जहेव जोइ सिएस उववज्जमाणस्स जाव असंखेज्जवासाउय सष्णिमणुस्सेणं भंते ! जे भवि सोहम्मकप्पे देवत्ताए उववजित्तए एवं तहेव असंखेजवा साउयस्त सण्णिपंचिंदिय तिरिक्ख जोणिए सोहम्मेकप्पे उववज्जमाणस्स तहेव सत्तगमगा णवरं अदिलेसु दो सुगमएस ओगाहणा जहण्णेणं गाउयं उक्कोसेणं तिण्णिगाउयाई ॥ तइयगमे {आयुष्यवाले संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय उत्पन्न होवे तो जैसे अमुरकुमार में संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय का उत्पन्न होने का कहा वैसे ही नवों गमा कहना. परंतु स्थिति व संबंध वैसे ही जानना. जघन्य स्थिति के तीनों गया में समदृष्टि मिध्यादृष्टि कहना. परंतु सममिध्यादृष्टि नहीं कहना. दो { ज्ञान दो अज्ञान की नियमा || ६ || यदि मनुष्य में से उत्पन्न होवे तो इस के भेद ज्योतिषी जैसे कहना. यावत् असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले संझी मनुष्य सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होने योग्य होवे तो जैसे अ संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले संज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय का सौधर्म देवलांक में उत्पन्न होने के सात गमा कहे ?
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