Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जहण्णणं तिण्णिगाउयाई, उक्कोसेणवि तिण्णि गाउयाई, चउत्थगमए जहण्णेणं गाउयं उक्कोसेणवि गाउयं ॥ पच्छिमएसु तिसु गमएसु जहण्णेणं तिण्णि गाउयाई उक्कोसेणवि तिण्णि गाउयाई । सेसं तहेव णिरवसेसं !। जइ संखेजवासाउय सण्णि मणुस्से एवं सखेज्जवासाउय सण्णि मणुस्साणं जहेव असुरकुमारेमु उववजमाणाणं तहेव णवगमगा भाणियन्वा, णवरं स्टोहम्मगदेवट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा, सेसं तंचेव ॥ ७ ॥ ईसाण देवाण भंते ! कओहिंतो उववजंति? ईसाणदेवाणं एसचेव सोहम्मग
देव सरिसा वत्तन्वया, णवरं असंखेजवासाउय सणिपंचिंदिय तिरिक्खजोणियस्स भावार्थ वैसे ही यहां कहना. परंतु पहिले दो गया में अवगाहना जघन्य एक गाउ उत्कृष्ट तीन गाउ.
तीसरा गमा में अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट तीन गाउ, चौथा में जघन्य उत्कृष्ठ एक गाउ पीछे के तीनों गमा में जघन्य उत्कृष्ट तीन गाउ अवगाहना कहना. शेष सब वैसे ही कहना ॥ ६ ॥ यदि मख्यात वर्ष के आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्य सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होवे तो जैसे असुर कुमार* में संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले संडी मनुष्य की उत्पत्ति कही वैसे ही नवों गमा कहना परंतु सौधर्म * *देवलोक की स्थिति व संबंध जानना ॥ ७॥ अहो भगवन् ! ईशान देवलोक में कहां से उत्पन्न होते हैं ?} "।
पंचमांगविवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 4.28.
48-चौबीसवा शतक का चौवीसबा उद्देशा4A
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