Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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12- जेसु ठाणेमु सोहम्मे उववज पलिओवमट्टिई तेमुठाणेसु इह सातिरेगं पलिओवमं
कायव्वं ॥ चउत्थगमे ओगाहणा जहण्णेणं धणुह पुहुत्तं उक्कोसेणं साइरेगाइं दोगाउयाई सेसं तंत्र ॥ ८ ॥ असंखेजवासाउय सण्णि मणुस्सस्सवि तहेव, द्विई जहा पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियस्स ॥ असंखेज्जवासाउयस्स ओगाहणावि जेसु ठाणेसु गाउयं तेसु ठाणेमु इहं सातिरंगं गाउयं सेसं तहेव ॥ संखेजवासा उयाणं तिरिक्ख जोणियाणं मणुस्साणय जहेब सोहम्मे उववजमाणाणं
तहेव गिरवसेसं णवगमगा, णवरं ईसाणे ट्ठिति संवहंच जाणेजा ॥९॥ सणंकुमारग भावार्थ अहो गौतम ! सौधर्म देवलोक की वक्तव्यता कहना. परंतु असंख्यात वर्षवाले संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय की
जिस स्थान सौधर्म में उत्पन्न होने की पल्योपम की स्थिति कही उस स्थान साधिक पल्योपम कहना. चौथा गमा में अवगाहना जघन्य प्रत्यक धनुष्य उत्कृष्ट साधिक दो गाउ. शेष वैसे ही कहना ॥ ८॥ असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले संज्ञो मनुष्य का भी वैसे ही कहना. परंतु स्थिति तिर्यंच पंचेन्द्रिय जैसे कहना. अवगाहना जिस स्थान में एक गाउ उस स्थान साधिक एक गाउ. मख्यात वर्षवाले तिर्यच व मनुष्य का सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होने जैसे नव गमा कहना.. परंतु ईशान की स्थिति व संबंध
ऋषिजी - १ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी चालाप्रसादजी *