Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमे.लक ऋषिजी +
सम्मामिच्छादिट्टी ॥णाणीवि अण्णाणीवि, दोणाणा दो अण्णाणी णियमें ॥ टुइ जहण्णेणं पलिओवमं उक्कोसेणं तिणिपलिओवमाइं, एवं अणुबंधोबि, सेसं तहेव ॥ कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाइं उक्कोसेणं छप्पलिओवमाई, एवइयं ॥ १ ॥ सोचेव जहण्ाकाला?ईएमु उववण्णो एस चेव वत्तव्वया णवरं कालादेसणं जहण्णेणं दो पलिओवमाई उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं, एवइयं जाव करेजा ॥ २ ॥ सोचेव उक्कोस काला?ईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिआवमाइं उनोसेणवि तिपलि.
ओवमाई .एसचेव वत्तव्बया, णवरं दिई जहण्णेणं तिपलिओत्रमाइं उक्कोसेणंवि तिपिण शेष सब अधिकार जैसे ज्योतिषी में उत्पन्न होने का कहा वैसे ही कहना परंतु यहां पर समष्टि व मिथ्यादृष्टि उत्पन्न होते हैं मीश्र दृष्टि नहीं उत्पन्न होते हैं, ज्ञानी व अज्ञानी उत्पन्न होते हैं जिस में दो ज्ञान दो अज्ञान की नियमा, स्थिति जघन्य एक पल्योपम उत्कृष्ट तीन पल्योपम ऐसे ही अनुबंध, कालादेश से जघन्य दो पल्यापम उत्कृष्ट तीन पल्योपम ॥ १ ॥ वही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हुवा वैसे ही वक्तव्यता कहना परंतु कालादेश से जघन्य दो पल्यापम उत्कृष्ट चार पल्योपम. इतना यावत करे ॥२॥ वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा जघन्य तीन पल्योषम उत्कृष्ट भी तीन पल्योपमं वैसे वक्तव्यता कहना..
प्रकाशक-राजावहादुर लालामुखदवसहाय
मावाथा
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