Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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वजित्तए सेण भत! एवं जहा असंखेजवासाउंय सणिपंचिंदिय जोइसिएसचेत्र उव. वजमाणस्स सत्तगमगा तहेव मणुस्साणवि, गवरं ओगाहणाविसेसो, पढमेसु तिसु गमएसु ओगाहणा जहण्णेणं साइरेगाई णवणुहसयाई उक्कोसेण तिण्णि गाउयाई मझिम गमए जहण्णेणं साइरेगाई णवणुहसयाई उक्कोसेणवि साइरेगाई णवधणुहसयाई, पच्छिमेसु तिसुवि गमएस जहण्णेणं तिण्णिगाउयाई, उक्कोसेणवि तिण्णि गाउयाई, सेसं तहेव शिरवसेसं जाव.संवेहोत्ति ॥ ४ ॥ जइ संखेजासाउय सण्णि
मणुस्से संखजवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेमु उववजमाणाणं तहेव णवगमगा भावाला के भेद पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! असंख्यात वर्ष के आयुष्य वाले संझी मनुष्य ज्योतिषी में उत्पन्न
होने योग्य होवे तो कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे असंख्यात वर्ष वाले तिर्यंचा पिंचेन्द्रिय के ज्योतिषी में उत्पन्न होने के मात गमा कहे वैसे ही कहना परंतु अवगाहना पहिले तीन गमा में जघन्य साधिक नव सो धनुष्य उत्कृष्ट तीन गाउ बीच के तीनों गमा में जघन्य - उत्कृष्ट साधिक नव सो धनुष्य और पीछे के तीनों गमा में भी अवगाहना साधिक नव सो
धनुष्य की जानना. शेष संबंध पर्यंत वैसे ही कहना ॥ ४॥ यदि संख्यात वर्षवाले संझी मनुष्य ज्यो"तिषी में उत्पन होये तो कितनी स्थिति से उत्पन्न होने वगैरह सब अमुरकुमार में संझी मनुष्य में उत्पमा
होने के नव गमे जैसे कई वैसे ही कहना. परंतु वहां पर ज्योतिषी की स्थिति व संबंध कहना. श्रेष
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *