Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
+8+ पंचमांग विवाह पष्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 45
गारयणी, सम्मद्दिट्ठी णो मिच्छद्दिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्ठी, जाणीणो अण्णाणी नियमं तिणाणी तंजहा आभिणिवोहिय णाणी, सुअणाणी, ओहिणाणी, ट्ठिई जहण्णेणं एक्कतीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, सेसं तंचेत्र, भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं चत्तारि भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं एक्कतीसं सागरोंमाई वास पुहुत्तमम्भहियाई उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं जाव करेज्जा ॥ एवं सेसावि अट्ट गमगा भाणियव्वा णवरं ट्टिई अणुबंध संवेहूंच जाणेज्जा ॥ सेसं तंत्र ||९|| सव्वसिद्ध देवेनं भंते ! भवि मणुए सव्वेव विजयादि देववन्तव्त्रया भाणियव्वा णवरं ट्टिई अजहण्ण मणुक्कोसं समदृष्टि परंतु मिथ्यादृष्टि व सममिथ्यादृष्टि नहीं, ज्ञानी परंतु अज्ञानी नहीं निश्चयही तीन ज्ञान जिनके नाम आभि {निबोधिक ज्ञान, श्रुत ज्ञानव विभंग ज्ञान स्थिति जघन्य एकत्तीस सागरोपम उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम, भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट चार भव, कालादेश से जघन्य एकतीस सागरोपम व प्रत्येक वर्ष अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम और दो पूर्व क्रोड अधिक, ऐसे ही शेष आठ गया कहना. परंतु स्थिति, अनुबंध व संबंध स्थिति अनुसार कहना || ९ || अहो भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध विमान के देव मनुष्य में उत्पन्न होने
++ चौवीसत्रा शतक का इक्कीसना उद्देशा
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