Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
० अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
विगमए अप्पसत्था, तइयगम ! पसत्या भवति, सेसं तंचेत्र णिरवसेसं ॥ ३ ॥ जइ आउकाइए, एवं आउकाइएणवि, एवं वणरसाइकाइएणवि एवं जाव चउरिंदियाणं असणिपंचिदिय तिरिक्खजोणिया सण्णिपंचिदिय तिरिक्खजोणिया, असण्णि मनुस्सा
मस्साए सवि जहा पंचिदियतिरिक्ख जोणिय उद्देसए तहेव भाणियन्त्रा, वरं एताणि चेत्र परिमाणं अज्झत्रसाण णाणताणि जाणिज्जा, पुढवीकाइयस्स एत्थचेत्र उद्देस भणियाण, सेसं तहेव णिरवसेसं ॥ ४ ॥ जइ देवेहिंतो उववज्जंति किं भवणवासि देवेहिंतो उववज्जंति, वाणमंतर जोइसिय वेमाणिय देवेर्हितो उववजंति ?
( पहिला गया में अध्यवसाय प्रशस्त व अप्रशस्त दोनों होते हैं, दूसरा गमा में अमशस्त और तीसरा गमा में प्रशस्त शेष वैसे ही कहना ॥ ३ ॥ यदि अप्काया में से उत्पन्न होवे तो अपकाया, व वनस्पतिकाया का पृथ्वीकाया जैसे कहना. ऐसे ही चतुरेन्द्रिय पर्यंत कहना. असंज्ञी - तिर्येच पंचेन्द्रिय, संज्ञी तिच पंचेन्द्रिय, असंज्ञी मनुष्य व संज्ञी मनुष्य का भी तिर्यच पंचेन्द्रिय के उद्देशे जैसे कहना. परंतु इन में परिमाण व अध्यवसाय में भिन्नता उपर्युक्त जैसे कहना शेष सब बैसे ही कहना. ॥ ४ ॥ यदि देव में से उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनवासी, वाणव्यंतर, ज्योतिषी या वैमानिक देव में से उत्पन्न होते हैं ? अहो
प्रकाश राजाबहादुरलाला सुखदेवसहायजी आलामसादजी *
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