Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ...
अहा पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएसु उववजंति, तहेव. णवरं परिमाणे जहण्णेणं एकोवा दोवा तिण्णिवा उक्कोसेणं संखेजावा उववजंति, जहा तिहिं अंतोमुहुत्तेहिं तहा इहं मासपुहुत्तेहिं.संवेहं च करेज्जा,सेसं तंचेव॥जहारयणप्पभाए वत्तव्बया तहा सक्करप्पभाएवि, णवरं जहण्णेणं वास पुहुत्त.दिईएसु उक्कोसेणं पुवकोडी, ओगाहणा लेस्सा णाणट्ठिइ अणुबंध संवेहं णाणत्तं च जाणेज्जा,जहेव तिरिक्वजोणिय उद्देसए एवं जाव तमापुढवी णेरइए।२। जइ तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं एगिदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति जाव पंचिं दिय तिरिक्खजोणिएहितो उक्वनंति ॥ गोयमा ! एगिदिय तिरिक्खजाणिए भेदो जहा होवे. शेष सब वक्तव्यता जैसे तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने की कही वैसे ही कहना. परंतु परिमाण जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यान उत्पन्न होते हैं. जैसे वहां पर अंतर्मुहूर्न कहा है. वैसे ही यहां पर प्रत्येक मास कहना. जैसे रत्नप्रभा की वक्तव्यता कही वैसे ही शर्करप्रभा की वक्तव्यता कहना. परंतु स्थिति जघन्य प्रत्येक वर्ष उत्कृष्ट पूर्व क्रोड. और लेश्या, ज्ञान स्थिति अनुबंध व संबंध तिर्यंच पंचेन्द्रिय जैसे कहना. ऐसे ही तमा पृथ्वी तक कहना ॥ २ ॥ याद तिर्यंच में से उत्पन्न होवे तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंच में से उत्पन्न होवे यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंच में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे पंचेन्द्रिय तिर्यंची
• प्रकाशक राजबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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भावार्थ