Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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चउगुणेजा॥६॥ आणयदेवेणं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवयइ काल ? गोयमा ! जहण्णेणं वास पुहुत्तदिइएसु उववज्जेजा उक्कोसेणं पुन्चकोडि ठिईएसु तेणं भंते ! एवं जहेव सहस्सारो देवाणं वत्तव्वया, णवरं ओगाहणाट्ठिति अणुबंधो २६६५ जाणेजा, सेसं तंचेव ॥ भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं छभवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणेणं अट्ठारससागरोवमाइं वासपुहुत्त मब्भहियाई, उक्कोसेणं सत्तावणं सागरोवमाइं तिहिं पुवकोडीहिं अन्भहियाइं एवइयं कालं सेवेजा॥ एवं णववि गमगाणवरं दिई अणुबंध संवेहंच जाणेजा एवं जाव अच्चुयदेवो णवरंदिई अणुबंध संवेहंच जाणेज्जा
. पाणयदेवस्साईिई तिगुणा सर्द्धि सागरोवमाइं, आरणगस्सतेवढेि सागरोवमाइं, अच्चुयस्स भावार्थ भी चौगुनी करना.॥६॥ अहो भगवन्! आणत देवलोकमें से जो मनुष्य होने योग्य होवे वह कितनीस्थिति
से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य प्रत्येक वर्ष उत्कृष्ट पूर्व क्रोड. शेष सहस्रार देव की वक्तव्यता कहना. परंतु अवगाहना, स्थिति व अनुबंध जानना. भवादेश से जघन्य दोभव उस्कृष्ट छभव कालादेश से जघन्य
भठारह सागरोपम प्रत्येकवर्ष अधिक उत्कृष्ट सत्तावन सागरोपम तीन पूर्व क्रोड अधिक, इतनाकाल यावत् 10 सेवे. ऐसे ही नव गमाकहना परंतु स्थिति, अनुबंध व संबंध इसकाही जानना. - ऐसे ही}|
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 498+
++ चौबीसबा शतक का इक्कीसका उद्देशा +8+