Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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चत्रांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) मत्र 4088
चउहियवाससयसहस्सेहिं अब्भहियाई एवइयं जाव गतिरागति करेजा ।। णवमु गमएमु णवरं द्विति संवेहंच जाणेजा ॥ १७ ॥ जइ वेमाणिय देव किं कप्पोवग, कप्पातीता ? गोयमा ! कप्पोववण्णगवेमाणिया णो कप्पातीता वेमाणिया ॥ जइ कप्पोववण्णग जाव सहस्सार कप्पोचवण्णग वेमाणिय देवहितो उववजंति, णो आणय जाव णो अच्चयकप्पोववण्णगवेमाणिय ॥ १८ ॥ सोहम्मंगदेवाणं भंते ! जे. भविए पंचिंदिय तिरिक्ख जाव उववजित्तए सेणं भंते ! केवइ ? गोयमा !
सवार्थ
भवादेश से आठ भव यावत् कालादेश से जघन्य पल्योपम का आठवा भाग व अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट चार पल्योपम और चार पूर्व क्रोड व चार लाख वर्ष अधिक. इतनी यावत् गतागत करे. नवों गमा में स्थिति और संबंध जानना ॥१७॥ यदि वैमानिक देव में से उत्पन्न होवे तो कल्पोत्पन्न में से या कल्पातीत में से उत्पन्न होबे? अहो गौतम! कल्पोत्पन्न में स उत्पन्न होवे परंतु कल्पातीत में से नहीं उत्पन्न होवे. अहो
गान ! यदि कल्पोत्पन्न में से उत्पन्न होवे तो क्या सौधर्म यानत् अच्युत में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! सौधर्म यावत् सहस्रार में से उत्पन्न होवे परंतु आणत, प्राणत, आरंण ब अच्युत में से उत्पन्न होवे नहीं ॥ १८ ॥ हो भगवन् ! सौधर्म देवलोक के देव पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होने योग्य हो
चोवीसवा प्रतकका बीसवा उद्देशा १४
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