Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अमोलक ऋषिजी gh 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री
णागकुमाराणं भंते ! जे भविए एसचेब वत्तब्बया, णवरं द्विति संवेहंच जाणेजा ॥ एवं जाव थणियकुमारे ॥ १५॥ जइ वाणमंतरेहिंतो उववजंति किं पिसाय वाणमंतरे तहेव जाव वाणमंतरेणं भंते ! जे भविए पंचिंदिय तिरिक्ख, एवंचेव, णवरं ट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा ॥ १६ ॥ जइ जोइसियउववाओ तहेव जाव जोइसिएणं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख एसचेव वत्तव्वया, जहा पुढवीकाइय उद्देसए, भवग्गहणाई णवमुवि गमएसु अट जाव कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभाग पलिओवर्म
अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं चउहिं पुवकोडीहिं श से उत्कृष्ट आठ भव लेना. और मपन्य दो भव लेना. स्थिति और संबंध अपनी २ स्थिति अनुसार कहना. नागकुमार यावत् स्तनितकुमार की बैसे ही वक्तव्यता कहना : परंतु स्थिति और संबंध भित्र २ कहना ॥१५॥ यदि वाणव्वंतर में से उत्पन्न होवे तो क्या पिशाच में से उत्पन्न होवे वैसे ही यावत् जो पाणब्यंतर तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने योग्य होवे बगैरह वैसे ही जानना. परंतु स्थिति और संबंध जानना ॥ १६ ॥ यदि ज्योतिषी में से उत्पन्न होवे तो वैसे ही यावतू जो ज्योतिषी में से पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होने योग्य होवे वगैरह वही वक्तव्यता पृथ्वीकाया के उद्देशे असे कहना. नवों गमा में
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ