Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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बारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी र
मभहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ॥ सोचेव : उक्कोसकालदिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिषिण पलिओवमाइं उक्कोसेणवि तिण्णि पलिओवमाई, एसचेव लडी जहेव सत्तमगमए, भवादेसेणं दो भवग्गहणाइं कालादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाई,पुम्बकोडीए अभहियाई, उक्कोसेणवि तिण्णि पलिओ. वमाइं पुवकोडीए अब्भहियाइं ॥ १३ ॥ जइ देवहितो उववजंति किं भवणवासी देवेहितो उववजंति, वाणमंतर जोइसिय वेमाणिय देवेहितो उववजति ? गोयमा !
भवणवासी देवेहितो उववजंति वाणमंतर जोइसिय वेमाणिय देवेहितोवि उववजंति कोड अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट तीन पल्योपम प्रत्येक क्रोड पूर्व अधिक. इतना यावत् करे. वही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हुवा वही वक्तव्यता कहना. कालादेश से जघन्य पूर्व कोर अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट चार, पूर्व क्रोड चार अंतर्मुहूर्त आधिक. वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ट तीन पल्योपम.. यही लब्धि सातबा गमा जैसे कहना. भवादेश से दो भव कालादेश से जघन्य तीन पश्योपम पूर्व क्रोड अधिक. उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम पूर्व नोड आधिक ॥१३॥ यदि देव में मे उत्पन्न होवे तो क्या भानपति देव में से, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, या वैमानिक देव में से उत्पन्न होते है ? अहो गौतम ! भवन
• प्रकाशक-राजाबहादुर साला मुखदेवमहायजी बालापसादजी.
भावार्थ
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