Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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माणस्स मज्झिमेमु तिसु गमएसु वत्तत्रया भणिया सव्वेय एयस्सवि मझिमएमु तिमु गमएमु णिस्वसेसा भाणियव्या, णसं परिमाणं उक्कोसेणं संखेजावा उववजति सेसं तंचेव ।। सोचे अप्पणा उक्कोसकालदिईओ जाओ सव्वेव पढमगमग वत्तव्वया २६५३ णवरं ओगाहणा जहण्णेणं पंचधणुहसयाई, उक्कोसेणवि पंचधणुह सयाई, ट्ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुवकोडी उकासेणवि पुवकोडी, सेसं तंचेव जाव भवादेसोति. कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं तिणि पलिओबमाई पुवकोडि पुहुत्तमब्भहियाई, एवइयं जाव करेजा ॥ सोचव जहण्ण कालट्ठिईए
उववण्णो एसचेव वत्तव्वया णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं पुनकोडी अंतोमुहुत्त पल्योपम प्रत्येक माम अधिक उत्कृष्ट तीन पल्योपम पूर्व कोड अधिक. इतना यावत् करे. वही जघन्य है स्थिति बाला उत्पन्न हुवा उस की सब वक्तव्यता संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने के बीच के तीनों
गमा जैसे कहना. परंतु परिमाण उत्कृष्ट में संख्यात उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना. वही उत्कृष्ट स्थिति से 21 ०७/ उत्पन्न हुवा यावत् सब पहिला गमा जैसे कहना. परंतु अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट पचिसो धनुष्य का 10 स्थिति और अनुबंध जघन्य उत्कृष्ट पूर्वफ्रोड शेष भमदेन पर्यंत वैसे ही कहना. कालादेश से जघन्य पूर्व
( भगवती ) सूत्र 428 4887 पंचमान विवाह पण्णाः
486 चौवीसवा शतक का बीसवा उद्देशा498