Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
4. अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सव्वे तवया वरं कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं वस्तारि पुव्यकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अन्भहियाओ ॥ सोचेत्र उक्कोसकालट्ठिईएसु उबवण्णो जहण्णेणं तिष्णिपलिओवमट्ठिईएस उक्कोसेणवि तिष्णिपलिओचमट्ठिईएसु सव्वेव वत्तव्वया, घरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहुत्तं, उक्कोसेणं पंचधणुहसयाई, ट्ठिई जहणणं मासपुहुत्तं उक्कोसेणं पुब्बकोडी एवं अणुबंधोवि, भवादेसेणं दो भवग्गहणाईं, कालादेसेणं जहणणं तिण्णिपलिओ माई मासपुहुत्त मन्महियाई, उक्कोसेणं तिष्णिपलिओ माई पुव्त्रकोडीए अन्भहियाई एवइयं जाव करेजा || सोचेव अपणा जहणकाल ईओ जाओ जहा सणिपंचिदिय तिरिक्खजोणिएसु उववज्ज अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्योपम और प्रत्येक पूर्वक्रोड अधिक. वही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हुआ वैसीडी वक्तव्यता कहना परंतु कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट चार. पूर्वक्रोह चार अंतर्मु{हूर्त अधिक. वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति से उत्पन्न होवे ? { शेष सब वक्तव्यता वैसे ही कहना. अवगाहना जघन्य प्रत्येक अंगुल उत्कृष्ट प्रत्येक धनुष्य स्थिति जघन्य प्रत्येक मास उत्कृष्ट पूर्व क्रोड. ऐसे ही अनुबंध. भवादेश से दो भव कालादेश से जघन्य तीन
* प्रकाशक- राजहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी- *
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