Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गोयमा ! सण्णिमणुस्सेर्हितो असण्णिमणुस्सेहिंतोवि ॥ १० ॥ असण्णिमणुस्सेणं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएस उववजति सेण भंत ! केत्रइयकालाट्ठईएम उवत्रजंति? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुत्र कोडीआरएस उववजंति, लडी सेतिविगमसु जव पुढवीकाइएस उववजमाणस्स संवेहो जहा एत्थचेव असण्णिस्स पंचिदियरस मज्झिमे तिसुगमएस तहेव णिरवसेसं भाणियन्त्रं ॥ ११ ॥ जइ सणमस्स किं संखेजवासाउय सण्णिमणुस्स असंखेज्जवासाउय सण्णिमणुस्स ? गांयमा !
असंज्ञी मनुष्य में से उत्पन्न होवे ! अहो गौतम ! संज्ञी मनुष्य में से उत्पन्न होने और असंज्ञी मनुष्य में { से भी उत्पन्न होवे || १० || अहो भगवन् ! जो असंज्ञी मनुष्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने योग्य होवे वे वहां कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अही गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व क्रोड. लब्धि बगैरह तीनों गमा में जैसे पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने का कहा वैसे ही कहना. संबंध यहां पर असंज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने का कहा बैसे कहना. मध्य के तीनों गमा में वैसे ही सब निरवशेष कहना. इस में उत्कृष्ट स्थिति नहीं होने से छल्ले तीन भांगे नहीं पाते हैं ||११|| जब संज्ञी मनुष्य में से उत्पन्न होने क्या संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले या असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले
उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम !
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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