Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
॥ ३१ ॥ असुरकुमारणं भंते! जे भविए पुढवीकाइएस उववजित्तए सेणं ते केवइय काल ट्ठिई ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई ट्ठिई ॥ ३२ ॥ तेणं भंते ! जीवा पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं एक्कोवा दोवा तिष्णिवा उक्कोसेणं संखज्जावा असंखेज्जावा उववज्जंति ॥ तेसिणं भंते! जीवाणं सरीरगा किं संघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी जाव परिणमइ ॥ तेसिणं भंते! जीवाणं के महालया सरीरोगाहणा ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहाभवधारणिज्जाय उत्तरवेउल्विया य ॥ तत्थणं जासा भव धारणिजा सा जहणणं
असुरकुमार पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष || ३२ || अहो भगवन् ! वे जीवों एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात असंख्यात उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! उन जीवों के शरीर कौन से संघयनवाले हैं ? अहो गौतम ! छ संघयन में से एक भी संघयनवाले नहीं हैं. अहो भगवन् ! उन की कितनी शरीर की अवगाहना कही ? अहो गौतम ! उन को दो प्रकार की अवगाहना ( कही, भवधारणीय और उत्तर वैक्रेय. उस में जो भवधारणीय है वह जघन्य अंगुल का असंख्यातवा
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
२६२०