Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ ॥ सोचेव जहण्ण काल ट्ठिईएसु उववण्णो एसंचव वत्तव्वया णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतीमुहुत्ता उक्कोसणं अट्ठ अंतोमुहुत्ता एवइय॥सोचेव उक्कोसकाल ढिईएसु उववण्णो जहणणं पव्व. कोडि आउएसु उक्कोसेणवि पुवकोडि आउएसु उववज्जइ,एसचेववत्तव्वया णवरं कालादेसेणं जाणेज्जा ॥ सोचव अप्पणा उक्कोसकालढिईओ जाओ सोचेवं पढमगमग वत्तवया णवरं ढिई जहण्णेणं पुवकोडी उक्कोसेणवि पुव्वकोडी सेसं तंचेव ॥ कालादेसेणं जहणेणं पुब्बकोडी अंतोमुहुत्त मन्भहिया, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइ
भागं पुन्चकोडिपुहुत्त मन्भहियं एवइयं ॥ सोचेव जहण्ण कालाहितीएसु उववण्णो आधिक. वही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हुवा वैसी ही वक्तव्यता कहना. परंतु कालादेश से जघन्य दो अंतर्महतं उत्कृष्ट आठ अंतर्मुहर्न. वही उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ट पूर्व क्रोड के आयुष्यसे । उत्पन्न होवे, वगैरह यही वक्तव्यता कहना. परंतु कालादेश उम आश्री जानना. वही उत्कृष्ट स्थितिवाला प्रथम गमा की वक्तव्यता कहना, परंतु स्थिति जघन्य उत्कृष्ट पूर्व क्रोड कहना. कालादेश से जघन्य पर्व क्रोड व अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवा भाग व प्रत्येक. पूर्व क्रोड अधिक. वहीं
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ