Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचांग विवाह पस्णचि ( भगवती) सूत्र 428
उक्कोसेणं तिण्णिपलिओवमाइं पुन्चकोडी पुहुन्त मध्भहियाइं एवइयं कालं ॥ ८ ॥ सोचेव जहण्णकाल द्वितीएसु उववण्णो एसचेव वत्तव्वया णवरं कालादेसेणं जहणणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ ॥ सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिओवमट्टितीएस उक्कोसेणवि तिपलिओवमट्टितीएसु उववति ॥ एसचेव वत्तव्वया णवरं परिमाणं जहण्णेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा उक्कोसेणं संखेजावा उववज्जति ॥ ओगाहणा
जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भांग उक्कोसेणं जोअणसहस्सं सेसं तंचेव जाव क्रोड अधिक इतना काल यावत् करे ॥ ८॥ वही जघन्य स्थिति से उत्पन्न हुवा ऐसी वक्तव्यता कहना; परंतु कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट चार पूक्रिोड चार अंतर्मुहुर्त अधिक. वही उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ट तोन पल्योपम की स्थिति से होवे. और मब वही वक्तव्यता कहना परंतु परिमाण में जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होवे, अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट एक हजार योजन. शेष अनुबंध पर्यंत वैसे ही कहना. भवादेश से दो भव. कालादेश से अपन्य तीन पस्योपम और अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट तीन पल्योपम और पूर्व
चौवीसवा शतकका बीसवा उद्देशा -
भावार्थ
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