Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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87 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 4887
.एसचेव वत्तव्यया जहा सत्तमगमए. णवरं कालादेसेणं जहणेणं पुब्बकोडी अंतो मुहुत्तमभहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ एवइयं ॥ सोचेव उक्कोसकालट्टितीएसु उबवण्णो जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेजइ भागं उक्कोसेणवि पलिओवमस्स असंखेजइ भागं, एवं जहा रयणप्पभाए जहण्णेणं उववज्ज. माणस्स असण्णिस्स णवमंगमं तहेव णिरवसे संजाव कालादेसोत्ति, णवरं परिमाणं जहा एतस्सेव ततियगमे, सेसंतंच ॥६॥जइसप्णिपंचिंदिय तिरिक्ख जोणिरहित उ वनंति किं
संखेजवासा असंखेजवासाउय?गोयमा! सखेज्जवासाणोअसंखेज्जवासा॥जइसंखेजवासाउय जघन्य स्थिति से उत्पन्न हुवा सातवा गमा जैसी वक्तव्यता कहना परंतु कालादेश से जघन्य पूर्व क्रोड अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट चार पूर्व क्रोड चार अंतर्मुहूर्त आधिक. वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा जघन्य पल्योपम का असंख्यातवा भाग और उत्कृष्ट भी पल्योपम का असंख्यातवा भाग. ऐसे ही रत्नप्रभा में
असंझी का जघन्य से उत्पन्न होने का नववा गमा कहा वैसे ही यहां कालादेश पर्यंत कहना. परिमाण 3. इस के ही तीसरे गमा जैसे कहना॥६॥याद संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रियमें से उत्पन्न होवे तो क्या संख्यातवर्षवाले या
असंख्यात वर्षवाले उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! संख्यात वर्षवाले उत्पन्न होवे परंतु असंख्यात वर्षवाले
33800 चौवीसवा शतक का बीसवा उद्देशा
भावा
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