Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिनी g+
उववज्जेजा, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तट्रिती अवसेसं तहेव णवरं, कालादेसेणं जहणणं तहेव उक्कोसेणं अत्तारि सागरोवमाई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं जाव करेजा ॥ एवं सेसावि सत्तगमगा भाणियब्बा, जहेव णेरइय उद्देसए, सणि पंचिदियएणं समं णेरइयाणं मज्झिमएसु तिण्णि गमएसु पच्छिल्लएसु तिण्णि गमएसु ट्ठिति णाणत्तं भवति, सेसं तंचेव, सव्वत्थ ट्ठिति संवेहं च जाणेजा ॥ ३ ॥ सक्करप्पभापुढवीणेरइएणं भंते ! जे भविए, एवं जहा रयणप्पभाए णवगमका तहेव सक्करप्पभाएवि, णवरं सरीरोगाहणा जहा ओगाहणा संढाणे, तिण्णि णाणा, तिण्णि और जैसे नारकी के उद्देशेमें कहा वैसे ही शेष सात गमा कहना. पंचेन्द्रियका नारकी की साथ वीच के तीन और छेल्ले तीन गमा कहे वैसे कहना. परंतु स्थिति भिन्न २ है. शेष सब वैने ही कहना. सर्वत्र स्थिति और संबंध जानना ॥३॥ अहो भगवन् ! शर्करपारा पृथ्वीका जो नारकी तिर्यंच पंचेंद्रिय में उत्पन्न होने योग्य होवे वगैरह जैसे रत्नप्रभा का कहा वैसे नव गना शर्कर प्रभा के जानना. विशेष में शरीर की अवगाहना व संस्थान जैसे पन्नवणाजी के इक्कीसवे पद में कहे वैसे ही जानना, तीन ज्ञान तीन अज्ञान की नियमा, स्थिति और अनुबंध पहिले कहा वैसे ही जानना ऐसे ही नव गमा उपयोग रखकर
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *