Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र १११
एणवि एवं जाव चरिंदिया उववातेयवो, णवर सव्वत्थ अप्पणो ली भाणियब्वा, णवसुवि गमएसु भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवम्गहणाइं, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई कालादेसेणं उभओट्ठितिं करेजा,सव्वेसि सम्वगमएसु जहेव पुढवीकाइएसु उववज्जमाणाणं रुडी तहेव सव्वत्थ ट्रिई संवेहंच जाणेजा ॥ ६ ॥ जइ पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं सण्णिपंचिंदिय तिरिक्खोणिएहितो उववजंति असण्णिपंचिंदिय
तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति ? गोयमा! सण्णिपाँचदिय भेदे जहेवं पढवीकाइ· एसु उववज्जमाणस्स जाव असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएणं भंते ! जे भविए
पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइकाल ? गोयमा ! जहण्ोणं कहना. विशेष में सर्वत्र अपनी लब्धि कहना. नवों गमा में भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट आठ भव. कालादेश से दोनों की स्थिति का मीलान करना. सब के सब गमा में जैसे पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने TI की लन्धि कही वैसे ही सर्वत्र कहना. परंतु स्थिति और संबंध भिन्न कहना ॥ १६ ॥ अहो. भगवन ! यदि तिर्यंच पचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे तो क्या संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच में से उत्पन्न होबे अथवा असंही तिर्यंच पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! संज्ञी 'पंचेन्द्रिय वगैरह भेद जैसे पृथ्वीकाया
चौवीसवा शतक का- बीसवा उद्देशा--
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