Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एवं उबवतो. जहा पुढविकाइय उद्देसए जात्र पुढवीकाइएणं भंते! जे भत्रिए पंचिदिय तिरिक्खजोणिएस उववजित्तए, सेणं भंते! केवइयकाल ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुट्ठिएस उक्कोसेणं पुञ्चकोडी आउएसु उववज्जति ॥ तेणं भंते ! जीवा एवं परिमाणादीया अणुबंध पज्जवसाणा जच्चेत्र अप्पो सट्टा वक्तव्या सचैत्र पंचिदिय तिरिक्खजोणिएसुचि उत्रवजमाणस्सवि भाणियन्त्रा, नवरं णवसुवि गमएसु परिमाणो जहणेणं एक्कांवा दोवा तिष्णिवा, उक्कोसेणं संखजावा असंखेज्जावा उबवज्जंति भवादेसेणंवि णत्रसु गमएसु जहणणेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं अट्ठभवग्गहणाई, सेसं तंत्र ॥ कालादेसेणं उभयतो ट्ठिई पकरेजा ॥ ५ ॥ जइ आउकाइउपपात कहना. यावत् अहो भगान् ! पृथ्वी काया पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होने योग्य होवे वे कितनी { स्थिति से उत्पन्न होत्रे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व क्रोड. अहो भगवन् ! वे जीवों | परिमाणादिक अनुबंध तक स्त्रस्थान में जो वक्तव्यता कही वही वक्तव्यता पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होनेवाले को कहना. परंतु नववा गमा में परिमाण जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात असंख्यात उत्पन्न होवे. भवादेश से नवों गया में जघन्य दो भव उत्कृष्ट आठ भव. शेष वैसे ही कालादेश से दोनों की स्थिति मीलाकर कहना ॥ ५ ॥ यदि अपकाया में से उत्पन्न होवे तो वगैरह चतुरेन्द्रिय पर्यंत उपपात
प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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