Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
4888 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्त ( भगवती ) सूत्र
तंजहा- भवधारणिनाय उत्तरवेउब्वियाय ॥ तत्थणं जे ते भवधारणिजा ते हुंडसंट्टिया । तत्थणं जे ते उत्तरवेउब्विया तेवि हुंडसट्टिया पं० ॥ एगा काउलेस्सा पं० ॥ चत्तारि समुग्धाया || णो इत्थीवेदगा णो पुरिसवेदगा, णपुंसगवेदगा || ट्ठिई जहण्णेणं दसवास सहरसाई उक्कणं सागरोवमं ॥ एवं अणुबंधोवि, सेसं तहेव भवादेसेणं जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं दसत्रास सहस्सा इं अंतोमुहुत्तमम्भहियाई. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुत्र कोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं सोवेव जहण्णकालट्ठितीएस उववण्णो जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्टिती सु भवधारणीय और उत्तर वैक्रेय. उस में भवधारणीय संस्थान हुंडक है और उत्तर वैक्रेय संस्थान भी हुंडक { है. एक कापोत लेश्या, चार समुद्धात, स्त्री वेद व पुरुष वेद वहां नहीं है परंतु नपुंसक वेद है स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट एक सागरोपम ऐसे ही अनुबंध. शेष वैसे ही कहना, भबादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट आठ भव. कालादेश से जघन्य दश हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट चार सागरोपम चार पूर्व कोड अधिक. वही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की स्थिति से उत्पन्न होवे. यावत् कालादेश तक वैसे ही कहना परंतु उत्कृष्ट चार सागरोपम और चार अंतर्मुहूर्त अधिक जानना.
4- चौवीसवा शतक का बीम़वा उद्देशा
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