Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी+
कसाया ॥ पंचइंदिया ॥ पंच समुग्धाया वेदणा दुविहावि ॥ इत्थी वेदगावि पुरिसवेदगावि - णो णपुंसगवेदगा ॥ द्विई जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं साइरेगं सागरोवम॥
अज्झवसाणा असंखेज्जा, पसत्थावि अपसत्थावि ॥ अणुबंधो जहा टिई, भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसणं जहणेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्त मन्भहियाई उक्कोसेणं साइरेगं सागरोवमं, बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं एवइयं॥ एवं णववि गमा णेयन्वा, णवरं मज्झिल्लएसु पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु असुरकुमाराणं ट्ठिई विसेसो जाणियब्यो, सेमा ओहिया चेव ॥ लडी कायसंवेहंच जाणेज्जा ॥ सव्वत्थ
दो भवग्गहणाइं जाव णवगमए, कालादेसेणं जहण्णेणं साइरेगं सागरोवमं बावीसाए अध्यवसाय असंख्यात और वे प्रशस्त अप्रशस्त दोनों, अनुबंध स्थिति जैसे. जानना. भवादेश मे दो भव . कालादेशसे जघन्य दश हजार वर्ष और अंतर्मुहूर्न अधिक, उत्कृष्ट साधिक सागरोपम और बावीस हजार वर्ष अधिक इतना यावत् करे. ऐसे ही नव गमा कहना. परंतु बीच के और छेले तीन गमा में असुरकुमार की स्थिति जानना. शेष सब औधिक जैसे जानना. सर्वत्र दो भव यावत् नववा गमा में कालादेश से जघन्य साधिक एक सागरोपम और बावीस हजार वर्ष अधिक और उत्कृष्ट भी साधिक एक साग-1
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ