Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भाव थि
* पंचांग विवाह परणति ( भगवती ) सूत्र
॥ एवं सेसावि अट्ठगमगा भाणियव्वा णवरं ट्ठिई कालादेसं चजाणेजा ॥ ४० ॥ ईसाणं देवेण भत! जे भविए एवं ईसाण देवेणवि णवगमगा भाणियव्वा, नवरं ईि अणुबंधों जहणेणं साइरेगं पलिओवमं उक्कोमेणं साइरेगाईं दो सागरोवमाई ॥ सेसं तंचेव ॥ सेवं भंते ! अंतेत्ति जाव विहरइ ॥ चउवीसइम सयस्स दुबालसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ १२ ॥
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णमो अदेवया ॥ आउकाइएणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति, एवं जहेव पुढवीकाइय उद्देसए जाव पुढवीकाइएणं भंते! जे भविए आउकाइएस उववज्जित्तए सेणं दो सागरोपम बावीस हजार वर्ष अधिक. ऐसे ही शेष आठ भांगे कहना. परंतु स्थिति और कालादेश भिन्न २ कहना ॥ ४० ॥ अहो भगवन् !. ईशान देव पृथ्वीकाया में वगैरह उस के नव गमा सौधर्म देव लोक जैसे कहना. परंतु स्थिति और अनुबंध जघन्य सातिरेक एक पल्योपम उत्कृष्ट साधिक दो मागरोपम {शेष वैसे ही कहना अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यों कहकर यावत् विचरने लगे. यह चौबीस (वा शतक का बारहवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ १२ ॥
तेरह उद्देशे के प्रारंभ में श्रुत देवता को नमस्कार किया है. अहो भगवन् ! अपकाया में कहां से
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4. चौवीसंवा शतकका तेरहवा उद्देशा
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